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ये वक्त ही तो हैं साहब ,एक दिन बदल जायेंगे ।

लड़कर ही परिस्थितियों से मजबूत खुद को बनायेंगे  ,  ये वक्त ही तो हैं साहब ,एक दिन बदल जायेंगे ।  ये  सोचकर मेहनत करते है , बदलेंगे  दिन अपने ,  क्या पता सच हो जाए  ,कहाँ  जाकर सपने।  समय  होता हैं बहुत चंचल , ये भी लौटकर आता है , सितम न करो साहब  समय सब  कुछ नहीं भूल पाता है।  संभलकर डालो बीज काटो का , तुम्हे भी चुभ जायेंगे  ये वक्त ही तो है साहब , एक दिन बदल जायेंगे ।  जय हिन्द 

हवा ने कुछ यू कहाँ -

तेज चलो या धीमे चलो पर तुम चलते चलो, चलोगे तेज मिशाल बनोगे , कमजोर में ताकत भरोगे।  बिखरे को समेटोगे ,टूटे को जोड़ोगे , बंद रास्ते को भी एक नई रास्ते में मोड़ोगे, हैं ये ' कठिन' काम इस शब्द को  भी पीछे छोड़ोगे।  तेज चलो या  धीमे     . . . . . . . . .  . . . . चलते चलो।। पानी अगर डरता तो झरने से नहीं गिरता वो , न प्यास बुझाता न सीन दर्शाता , न पिने योग्य रह जाता ।  जो आया है उसे जाना है , फिर  कुछ नया करने से क्यों घबराना है।  हवा ने भी माना है ,तेज चलो या धीमे चलो  पर तुम चलते चलो।  जैसे -घुमक्कड़ घूम कर हर चीज को पहचाना है  अपने मस्तिष्क को सिखने में लगाकर  उसको जंग लगने से बचाना है रखो जूनून ऐसा की कुछ कर के ही जाना है।  हवा ने भी माना  है , तेज चलो या धीमे चलो  पर तुम चलते चलो।  जय हिन्द   

ऐ कलम तुझसे तो इतिहास लिखा है तुझसे दर्द कहा छुपा है

मन उदास था हाथ में कलम थी  आखो में आसुओ संग ,  होठ पे मुस्कुराहट थी।  दिमाक परेशान था लिखू क्या मै , दिल कलम चलाते जा  रहा था ' छोड़ू क्या ? मै ' दिल कलम से अपना हाल बता रहा था ,   दिल कहता है मैंने दुनिया देखि है पास से , जीते भी है यहा  मरते भी है , मारते भी है शब्दों के बाण  से।  ऐ 'कलम' यहा ठोकर लगते है कदम पे कदम , किसी को सच खा गया तो किसी को झूठ खा गया , बचा वो भी नहीं जो ये दोनों दबा गया।  खुश तो वो भी नहीं  जो है बहुत अमीर , रोता है वो भी जो चलता है 'भिक्षु' के लिए  मिलो दूर।  ए कलम तुझसे तो इतिहास लिखा है , तुझसे दर्द कहा छुपा है।  जय हिन्द 

dowry

है तू बहुत खुद्दार , मजबूर कर देता है लेने  को उधार। थोड़ा सा भी कम  पड़ा तो  , बिच में लटका देता है अरमान।  एक मिनट में अपनी शक्तियों से , ला देता है बड़े -बड़े लोगो में बदलाव।  होता है प्यार दो दिलो में ,  फिर तू क्यों कर   देता है  अलगाव।  उतार देता है माँ बाप की पगड़ी , बेटी की कर देता है दुःख भरी जिंदगी।  तुझे किस नाम से पुकारू , " हु "बेखबर , होना है तुझसे रूबरू ।  माँ की ममता को खा गया तू , बाप की कमाई खा गया तू , भाई ने सपने नहीं देखे , और तू कहता है  'और ' दे - दे।  खुश हो जाते है लोग तुझे पाकर , घुट -घुट कर जीती है वो बेटी तेरे घर आकर।  तू कहता है गाड़ी चाहिए नहीं तो शादी को  'ना'  कर।  सुन ऐ  समाज के रिवाज , तू बहुत तुच्छ है।  जो पाया तुझे ,उसका भूख नहीं मिटा , जो दिया तुझे वो भूख से मर मिटा।  दोस्तों पढ़ लिखकर तुम  करना इसका परहेज , रुला देता है  माँ - बाप को इसका नाम है "दहेज़"।      
वो आसुओ को नहीं समझेगा , जब तक उसकी आखे नहीं भीग जाती। हे मानव इंसानियत की करुणा बरसाओ , वक्त है बहुत संभल जाओ।  कुछ अच्छा पाने के लिए किसी का दिल न दुखाओ , 'बसों ' तुम किसी के दिल में कुछ ऐसा कर जाओ।  कलयुग है ये माना मैंने ,पर न किसी को नाच नचाओ।   है घडी की सुई ये भी नाच नचाती है , हसाते - हसाते रुलाकर गोल -गोल  घूम जाती है।  चाहते हो क्या तुम हो अभी अन्जान तुम , सबकी मेहनत रंग लाती है फिर क्यों ? हो परेशान तुम।   यहाँ मिलते है सब मिटटी में फिर क्यों ? करते हो अभिमान तुम।  आओ मिलकर सुख- दुःख बाटले , है मुश्किल की घडी  'तुम ' से "हम" बनकर इसमें भाग ले।    जय हिन्द       

covid 19(corona)

आजादी मिली थी 1947 में. सुनी थी दादी से आज़ादी कि कहानी ,लोग डर -डर के जीते थे ये बात थी पुरानी | न विकास था देश का न थी अच्छी तलवार , मार गिराते थे अंग्रेज लोगो को  कई- कई बार, लड़ते रहे देश के वीर जवान ,हार न मानी पैदा हुई फिर झाँसी की रानी।  वीर जवानो ने गंगा जैसे- खून बहाया  तब जाकर भारत ने आज़ादी पाया।  सुनी थी ये दादी से कहानी ,वीरो ने हार नहीं थी मानी।  हम है आज़ादी के बाद के बच्चे ,बंदिश में रहना हमें नहीं लगते अच्छे।  चल रही थी जिंदगी   मजे -मजे में फिर दिया कोरोना (कोविड 19 )ने दस्तक, बच पा रहा था वही जिसकी थी इम्युनिटी सही।   फैलता था ये एक दूसरे को छूने से ,एक मीटर  की दुरी बनाओ, चाहते हो अगर जिंदगी  जीने को. सब  तरफ हाहाकार मचा ,जो था ज्ञानी वो भी कोरोना के आगे झुका।  छीन गई बाहर जाने की आज़ादी*  सब तरफ होने लगी बर्बादी।   बंद था सब फिर भी हो रहा था शोर * जानवर भी सोच रहा थे इंसान कहा छुपा "जैसे -छुपे चोर।  चपेट में आ रहे थे सब इसके , दहशत फ़ैल रही थी चारो ओर , घर में   बैठकर लोग हो रहे थे फिर भी बोर। .  बाहर पुलिस ,डॉक्टर ,सफाई कर्मी ,जान पे खेलकर दे रहे थे अपना सहयोग दादी