हवा ने कुछ यू कहाँ -

तेज चलो या धीमे चलो पर तुम चलते चलो,

चलोगे तेज मिशाल बनोगे ,

कमजोर में ताकत भरोगे। 

बिखरे को समेटोगे ,टूटे को जोड़ोगे ,

बंद रास्ते को भी एक नई रास्ते में मोड़ोगे,

हैं ये ' कठिन' काम इस शब्द को  भी पीछे छोड़ोगे। 


तेज चलो या  धीमे     . . . . . . . . .  . . . . चलते चलो।।


पानी अगर डरता तो झरने से नहीं गिरता वो ,

न प्यास बुझाता न सीन दर्शाता ,

न पिने योग्य रह जाता । 

जो आया है उसे जाना है ,

फिर  कुछ नया करने से क्यों घबराना है। 

हवा ने भी माना है ,तेज चलो या धीमे चलो 

पर तुम चलते चलो। 


जैसे -घुमक्कड़ घूम कर हर चीज को पहचाना है 

अपने मस्तिष्क को सिखने में लगाकर 

उसको जंग लगने से बचाना है


रखो जूनून ऐसा की कुछ कर के ही जाना है। 



हवा ने भी माना  है , तेज चलो या धीमे चलो 

पर तुम चलते चलो। 





जय हिन्द 








 

















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