माँ अपने बच्चो से क्या चाहती है ? थोड़ा प्यार ,विस्वास ,एकता माँ बचपन से अपने बेटे को संस्कार देती है चलना दौड़ना खाना सिखाती है। जब हम रोते थे बचपन में ,सभी काम छोड़ हमे हसाने में लग जाती थी माँ किसने मारा मेरे बाबू को ,ऐसा बोल जमी को मारने लगती थी। मेरा बेटा राजा है बहादुर है ऐसा बोलकर मनोबल बढ़ाने लगती थी। बचपन तो ऐसे बीत गई खुशियों में जैसे बचपन कम मिली थी , आज भी वो खुशियों के पल याद आते है जब माँ कहती थी ,मेरा राजा बेटा खाना खालो वरना माँ भी नहीं खायेगी । आज माँ बूढी हो गई है और उन्हें कोई खाना समय पर नहीं देता क्यों ? क्योकि वह काम नहीं कर सकती या वो बैठकर खा रही है। बचपन में वो अपने राजा बेटे को उसके पीछे -पीछे जाकर खिलाती थी आज बेटा उसी माँ को बैठाकर नहीं खिला पा रहा है। जो माँ राजा बेटे के लिए सबसे लड़ जाती थी वो बेटा आज उसी माँ से लड़ रहा है। जो माँ एक रोटी कम खाकर बेटे को भरपेट खिलाती थी अपने हाथो से , आज बेटा माँ ने कुछ खाया की नहीं ,नहीं पूछता। जो माँ राजा बेटे को स्कूल से लेने कई किलो मिटेर पैदल चलती थी आज बेटा पास के
टिप्पणियाँ