वो आसुओ को नहीं समझेगा ,

जब तक उसकी आखे नहीं भीग जाती।

हे मानव इंसानियत की करुणा बरसाओ ,

वक्त है बहुत संभल जाओ। 

कुछ अच्छा पाने के लिए किसी का दिल न दुखाओ ,

'बसों ' तुम किसी के दिल में कुछ ऐसा कर जाओ। 

कलयुग है ये माना मैंने ,पर न किसी को नाच नचाओ। 

 है घडी की सुई ये भी नाच नचाती है ,

हसाते - हसाते रुलाकर गोल -गोल  घूम जाती है। 


चाहते हो क्या तुम हो अभी अन्जान तुम ,

सबकी मेहनत रंग लाती है फिर क्यों ? हो परेशान तुम। 



 यहाँ मिलते है सब मिटटी में फिर क्यों ? करते हो अभिमान तुम। 

आओ मिलकर सुख- दुःख बाटले ,

है मुश्किल की घडी  'तुम ' से "हम" बनकर इसमें भाग ले। 

 

जय हिन्द 

 




 

 


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