मैं खुद नहीं चलता साहब मुझे ये चलाता हैं

मैं खुद नहीं चलता साहब मुझे ये चलाता  हैं 

हर सुबह हर शाम एक नई सबक दे जाता है ,

रुकता है ये पास जिसके बादशाह वो बन जाता है ,

हाथो की रेखाएं बनकर किस्मत नाम दे जाता है


यू तो कराता  है कड़ी मेहनत फिर "खुद "को दे जाता है 


मैं खुद नहीं चलता साहब मुझे तो ये चलाता है। 


रुकता नहीं पास उसके ,आलस है पास जिसके 

बून्द -बून्द से घड़ा भरता है ,खुद को बून्द बताता है 


जहा होती  है इसकी हस्ती बना लेता है वही ये बस्ती ,

है अकड़ इसके भी अंदर ,दिखाता है   डुबाकर कस्ती ,

हर पल हर जगह क्यों ? ये अकड़ दिखाता है 


मैं खुद  नहीं चलता साहब मुझे ये चलाता है। 


मिल जाए बिन मांगे तो नाज करना तुम किस्मत पे ,

वरना चप्पलें घिसकर 'दो' वक्त की रोटी देता है 


बड़े मजे मजे में ही सबको  नाच नचाता है ,

रूपया पैसा धन दौलत कई नाम से जाना जाता है। 



















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